साहसी राजा और अंधकार का रहस्य

साहसी राजा और अंधकार का रहस्य

बहुत समय पहले, हिमालय की घाटियों में बसे हुए “सूर्यनगरी” नामक राज्य पर राजा वीरसिंह का शासन था। वीरसिंह केवल अपने साहस और युद्ध कौशल के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी न्यायप्रियता और प्रजा के प्रति प्रेम के लिए भी प्रसिद्ध थे। वह कहते थे, “राजा का असली बल उसकी प्रजा होती है।” उनकी प्रजा उन्हें पूजती थी, और राज्य में चारों ओर सुख-शांति थी।

लेकिन यह सुख-शांति ज्यादा दिन नहीं रही। एक दिन, सूर्यनगरी के आसमान पर घने बादल छा गए। दिन में भी रात जैसा अंधेरा हो गया। पक्षी चहचहाना बंद कर चुके थे, और जानवर भी डर के मारे दुबक गए थे। प्रजा ने इसे अशुभ संकेत माना।

रहस्यमय संदेश

उसी रात राजा वीरसिंह को एक रहस्यमय संदेश मिला। संदेश में लिखा था:
“यदि इस अंधकार से छुटकारा पाना है, तो तुम्हें कालद्वीप के शैतानी गुफा तक जाकर ‘ज्योति मणि’ लानी होगी। लेकिन सावधान, यह कार्य केवल वही कर सकता है जो सच्चा और निडर हो।”

वीरसिंह ने मंत्रियों से परामर्श लिया, लेकिन सब डरे हुए थे। उन्होंने कहा, “यह बहुत खतरनाक है, महाराज! हम सेना भेजेंगे।”
लेकिन राजा वीरसिंह ने दृढ़ता से कहा, “यह कार्य केवल राजा का है। प्रजा के सुख और राज्य की रक्षा मेरा कर्तव्य है। मैं अकेले जाऊंगा।”

यात्रा की शुरुआत

वीरसिंह ने अपने घोड़े अर्जुन और अपनी तलवार ‘सूर्यकिरण’ को साथ लिया। वह जंगलों, पहाड़ों और खतरनाक नदियों को पार करते हुए कालद्वीप की ओर निकल पड़े। रास्ते में उन्हें तरह-तरह के जीव-जन्तुओं और प्राकृतिक बाधाओं का सामना करना पड़ा।

एक बार, जब वे एक भयंकर नदी पार कर रहे थे, तो नदी की धाराएं इतनी तेज थीं कि अर्जुन फिसलने लगा। तभी राजा ने अपनी तलवार का सहारा लेकर खुद को और अपने घोड़े को बचाया। इस साहसिक घटना ने राजा के आत्मविश्वास को और मजबूत किया।

राक्षसी गुफा का सामना

अंत में, राजा कालद्वीप पहुंचे। वहां चारों ओर धुंध और अंधकार था। गुफा के बाहर एक विशालकाय राक्षस खड़ा था। राक्षस ने गरजते हुए कहा, “यहां तक पहुंचने की हिम्मत किसी ने आज तक नहीं की। अब अपनी मौत के लिए तैयार हो जाओ!”

लेकिन वीरसिंह शांत और तैयार थे। उन्होंने अपनी तलवार खींची और राक्षस के साथ भयंकर युद्ध किया। कई घंटों की लड़ाई के बाद, वीरसिंह ने अपनी चतुराई और साहस से राक्षस को पराजित कर दिया।

ज्योति मणि का रहस्य

गुफा के अंदर, राजा ने ‘ज्योति मणि’ को एक चमचमाते स्तंभ के ऊपर रखा पाया। जैसे ही उन्होंने मणि को उठाया, गुफा कांपने लगी, और चारों ओर का अंधकार धीरे-धीरे छंटने लगा। मणि की रोशनी इतनी तेज थी कि उससे पूरा कालद्वीप जगमगा उठा।

वापसी और सूर्यनगरी का उद्धार

वीरसिंह ने मणि को लेकर सूर्यनगरी वापसी की। जैसे ही उन्होंने मणि को राज्य के मुख्य मंदिर में स्थापित किया, आसमान साफ हो गया, सूरज चमकने लगा, और पक्षी फिर से चहचहाने लगे।

प्रजा ने राजा का स्वागत बड़े हर्षोल्लास के साथ किया। लोग उनके साहस और निडरता की कहानियां गाने लगे। राजा वीरसिंह ने मणि को राज्य की रक्षा के लिए मंदिर में स्थापित कर दिया और प्रजा से वादा किया कि वह हमेशा उनके सुख-दुख का ध्यान रखेंगे।

कहानी की सीख

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्चा राजा वही होता है जो अपने प्रजा की भलाई के लिए अपनी जान तक दांव पर लगाने से न डरे। वीरता और निडरता से बड़े से बड़ा अंधकार भी मिटाया जा सकता है।

समाप्त।

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